शेरशाह सूरी के सिक्कों की कहानी: भारत में ‘रुपया’ का आगाज

sher shah suri

Silver Coin History: भारत में लेन-देन के लिए काफी पहले से अलग-अलग धातुओं के सिक्के और मुद्राएं चलन में थीं पर पहली बार व्यवस्थित ढंग से शेरशाह ने ही अपने शासनकाल में चांदी के सिक्के शुरू किए. शेरशाह ने ही अपनी मुद्रा को रुपया कहा जो आज नया रुपया के रूप में भारत की मुद्रा है. चांदी की चमक दुनिया भर में लगातार बढ़ती ही जा रही है. बीती 16 मई को तो इसकी कीमत अब तक के उच्चतम स्तर तक पहुंच गई. एक दिन में 1195 रुपए की बढ़ोतरी के साथ चांदी का दाम 85,700 रुपए प्रति किलो हो गया. यह वही चांदी है, जिसके सिक्कों का इस्तेमाल किसी समय में आम लेन-देन के लिए किया जाता था.

भारत में चांदी के सिक्कों का चलन सबसे पहले शेरशाह सूरी ने शुरू किया था. आइए जान लेते हैं कि कैसे थे सूर वंश के संस्थापक शेरशाह के जिसने चलवाए चांदी और दूसरी धातुओं के सिक्के. शेरशाह सूरी का जन्म 1486 ईस्वी में बिहार के सासाराम के जागीरदार हसन खान के घर हुआ. उनका असली नाम फरीद था. बहादुरी के लिए फरीद को शेर खान की उपाधि दी गई थी. बड़े होकर फरीद ने मुगल सेना में काम किया और बाबर के साथ साल 1528 में चंदेरी की लड़ाई में भी हिस्सा लिया था. इसके बाद शेरशाह बिहार में जलाल खान के दरबार में काम करने लगे. वहीं, बाबर की मौत के उनके बेटे हुमायूं ने बंगाल को जीतने की योजना बनाई पर रास्ते में शेरशाह सूरी का इलाका पड़ता था. इसलिए दोनों की सेनाएं आमने-सामने आ गईं. साल 1537 में चौसा के मैदान में एक ओर सेनाएं युद्ध को तैयार थीं तो दूसरी ओर हुमायूं ने अपना एक दूत मोहम्मद अजीज शेरशाह के पास भेजा. दूत अजीज की पहल पर लड़ाई के बिना ही हुमायूं और शेरशाह सूरी में समझौता हो गया और मुगलों के झंडे के नीचे बंगाल और बिहार का शासन शेरशाह सूरी को सौंपने का फैसला हुआ. हालांकि, इसके कुछ महीने बाद ही 17 मई 1540 को कन्नौज में हुमायूं और शेरशाह सूरी की सेनाएं फिर आमने-सामने आ गईं. शेरशाह की सेना में तब करीब 15000 सैनिक थे और हुमायूं की सेना में 40 हजार से भी ज्यादा.

इसके बावजूद हुमायूं के सैनिकों ने लड़ाई में उनका साथ छोड़ दिया और शेरशाह की जीत हो गई. इसके साथ ही मुगलों की जगह हिन्दुस्तान पर शेरशाह सूरी का राज्य स्थापित हो गया और उसने सूर वंश की स्थापना की. यह बात और है कि उसका शासन काफी कम समय तक चला. अपने कम शासनकाल (1940 से 1945) में ही शेरशाह सूरी ने विकास के काफी काम किए. वैसे तो भारत में लेन-देन के लिए काफी पहले से अलग-अलग धातुओं के सिक्के और मुद्राएं चलन में थीं पर पहली बार व्यवस्थित ढंग से शेरशाह ने ही अपने शासनकाल में चांदी के सिक्के शुरू किए. शेरशाह ने ही अपनी मुद्रा को रुपया कहा जो आज नया रुपया के रूप में भारत की मुद्रा है. उनके चांदी के एक सिक्के का वजन करीब 178 ग्रेन यानी लगभग 11.534 ग्राम था. ब्रिटिश काल में इसका वजन 11.66 ग्राम था और उसमें 91.7 फीसदी तक चांदी होती थी. बाद में दोबारा मुगल शासन की स्थापना होने के बाद से लेकर अंग्रेजों के शासन काल तक इन सिक्कों का चलन रहा और आज भी ये सिक्के पाए जाते हैं. चांदी के सिक्के के अलावा अपने शासन के दौरान शेरशाह सूरी ने दाम यानी छोटा तांबे का सिक्का, मोहर यानी सोने का सिक्का भी चलाया था. चांदी का सिक्का एक रुपया कहा जाता था तो एक तोला सोना बना एक सिक्का मोहर कहा जाता था. तब सोने के एक सिक्के (मोहर) का मूल्य 16 रुपए था. यानी एक मोहर के बदले में चांदी के 16 सिक्के देने पड़ते थे. शेरशाह के बाद मुगलों के मानक सोने के सिक्के यानी मोहर का वजन 170 से 175 ग्रेन के बीच थी.

हालांकि, शेरशाह सूरा का चलाया चांदी का रुपया मुगलों के शासनकाल में भी सबसे प्रसिद्ध था. मुगलकाल में शेरशाह के तांबे के सिक्के यानी दाम की तर्ज पर तांबे के सिक्के चलाए गए, जिनका वजन 320 से 330 ग्रेन होता था. वहीं, मुगल शासक अकबर ने अपने समय में गोल और वर्गाकार दोनों तरह के सिक्के चलवाए थे, साल 1579 में अकबर ने अपने नए धार्मिक पंथ दीए-ए-इलाही के प्रचार-प्रसार के लिए इलाही नाम से सोने के सिक्के चलवाए थे. उस वक्त एक इलाही सिक्के का मूल्य 10 रुपए था. मुगलों के दौर में सोने का सबसे बड़ा सिक्का शहंशाह कहा जाता था, जिस पर फारसी सौर माह के नाम होते थे. मुगल शासक जहांगीर ने अपने समय में सिक्कों पर छंद उकेरे थे तो कुछ सिक्कों पर अपनी पत्नी नूरजहां का नाम भी लिखवाया था. हालांकि, जहांगीर के सबसे प्रसिद्ध सिक्कों पर राशि चक्र के चिह्न मिलते हैं.

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