हाल-ए-ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण : एक प्लॉट दो लोगों को बेचा, बदले में लिए 1.15 करोड़ रुपये, 9 सालों से भटक रहा पीड़ित
ग्रेटर नोएडा : ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण द्वारा एक ही प्लॉट दो फर्मों को आवंटित किए जाने के कारण एक आवंटी को 9 साल तक भारी परेशानी झेलनी पड़ी। दूसरी ओर प्राधिकरण के अधिकारियों ने इसे तकनीकी गड़बड़ी का परिणाम बताते हुए कहा कि वे इस समस्या का समाधान करने पर काम कर रहे हैं।
मामले की शुरुआत
साईं डाटा सॉफ्टवेयर सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक अनिल गोसाईं को 30 मई, 2014 को सेक्टर टेकजोन-4 में 1,000 वर्ग मीटर का औद्योगिक प्लॉट बीपीओ आईटी से संबंधित व्यवसायों के लिए एक योजना के तहत आवंटित किया गया था। इसके बाद गोसाईं ने नियमों के अनुसार प्राधिकरण को प्लॉट की कीमत 1,15,90,000 रुपये का भुगतान किया।
प्राधिकरण ने गलती से परेशान
अनिल गोसाईं ने कहा, “पूरा भुगतान करने के बाद जब मैंने अपनी कंपनी के नाम पर भूखंड की रजिस्ट्री के लिए प्राधिकरण के वरिष्ठ अधिकारियों से संपर्क किया तो वे इसमें देरी करते रहे। बाद में मुझे पता चला कि प्राधिकरण ने गलती से आधा भूखंड जो 500 वर्ग मीटर है, उसे किसी दूसरी कंपनी को आवंटित कर दिया है।”
सीईओ और अन्य अफसरों ने नहीं की मदद
गोसाईं ने बताया कि उन्होंने प्राधिकरण से अनुरोध किया कि वे उन्हें कोई अन्य औद्योगिक भूखंड आवंटित करें और प्राधिकरण सहमत हो गया। लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई और वे बिना किसी गलती के परेशान होते रहे। उन्होंने ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रविकुमार एनजी और विशेष कार्य अधिकारी नवीन कुमार सिंह से कई बार मुलाकात की और मामले में मदद का अनुरोध किया। सीईओ और ओएसडी ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे जल्द ही किसी अन्य स्थान पर औद्योगिक भूखंड आवंटित करेंगे, लेकिन यह आश्वासन आज तक पूरा नहीं हुआ।
लम्बी परेशानी झेलने को मजबूर पीड़ित
इस मामले में ओएसडी नवीन कुमार सिंह ने कहा, “प्राधिकरण इस आवंटी की समस्या को हल कर रहा है, जिसे कुछ तकनीकी त्रुटि के कारण असुविधा का सामना करना पड़ा। प्राधिकरण इस आवंटी को एक अलग स्थान पर एक और प्लॉट आवंटित करने की प्रक्रिया पूरी कर रहा है।” अनिल गोसाईं ने उत्तर प्रदेश सरकार की एकीकृत शिकायत निवारण प्रणाली पर भी शिकायत दर्ज की, लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। वहीं, गोसाईं ने कहा कि मुझे आश्चर्य है कि एक प्लॉट को दो बार आवंटित किया जा सकता है। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की इस गलती ने एक आवंटी को नौ साल की लंबी परेशानी झेलने पर मजबूर कर दिया।